मंगलवार, 16 जनवरी 2018

नमो नमो माँ ललिते नित्य आरती


नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते। 
                      हरिहर बिधि नित ध्यावै
                                  सुर नर मुनि चित लावैं तव कीरत कलिते।
                                                      माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
त्रिगुणमयि त्रिपुरा तुम
                      त्रिभुवन सुखदानी
                                      लीलाविग्रह धारणी राजेश्वर रानी।
                                                      माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
पंचासन पे राजे चार भुजाधारी
                      धनुष बाण पांशंकुश
                                     निज जन सुख कारी।
                                                     माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
अदभुत करुण कौ मद नैनन में सोहैं
                      कोटिन भानु प्रभासम
                                    तरुण अरुण आभासम मुखमण्डल मोहै।
                                                    माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
तुम षटचकृ निवासिन कुंडलिनि रूपा
                      यन्त्रराज में राजत
                                   मणिद्धीप में विराजत वरदा सुरभूपा।
                                                  माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
राधा रूप अगाधा
                      गायत्री गीता
                                   यमुना हरि पटरानी सावित्री सीता।
                                                   माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
काली बगला
                     बाला तारा भुवनेशी
                                   बाराही मातांगी कमला वचनेशी।
                                                   माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
छिन्नशिरा चामुंडा
                     कामेशी काशी
                                   कोटिन रूप भवानी तेरे अविनाशी
                                                   माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।।
जो यह ललिता आरति 
                    भक्ति सहित गावैं
                                   देवन दुर्लभ अगम परमशिव पद पावै |
                                                  माँ नमो नमो ललिते माँ श्री विद्या ललिते।। 

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

Shri Yamuna Ji Dharmraj Temple: Photos

Shri Yamuna Ji Dharmraj Temple: Photos: श्री यमुना महारानी और धर्मराज जी की जय

पुराणों में यमराज को मृत्यु का देवता बताया गया है। इनका न‌िवास यमलोक माना गया है। आइये जानें की मृत्यु के देवता की नगरी कहां और कैसी है।

  • 1 यमलोक में यमराज का व‌िशाल राजमहल है जो 'कालीत्री' नाम से जाना जाता है। यमराज अपने राजमहल में 'विचार-भू' नाम के स‌िंहासन में बैठते हैं।
  • 2 गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में यमलोक के बारे में बताया गया है ज‌िसमे कहा गया है क‌ि 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक बसा है। योजन प्राचीन काल में दूरी नापने का पैमाना था। एक योजन में 4 क‌िलोमीटर होते हैं।
  • 3 यमलोक में प्रवेश के ल‌िए चार द्वार हैं जो चारों द‌िशाओं में स्‍थ‌ित हैं। दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। दान-पुण्य करने वाले व्यक्त‌ि पश्च‌िमी द्वार से प्रवेश करते हैं। उत्तर द्वार से उन्हें प्रवेश म‌िलता है जो सात्व‌िक व‌िचारों वाले और सत्यवादी होते हैं। माता-प‌िता एवं गुरूजनों की सेवा करने वाले भी इसी द्वार से यमलोक में प्रवेश पाते हैं।
  • 4 सबसे उत्तम द्वार उत्तर द‌िशा में है। इसे स्वर्ग द्वार के नाम से जाना जाता है। इस द्वार से स‌िद्ध संत और मुन‌ियों को प्रवेश म‌िलता है। इस द्वार से प्रवेश करने वालों का स्वागत अप्सराएं, देव और गंधर्व करते हैं।
  • 1 पुराणों में यमराज को मृत्यु का देवता बताया गया है। इनका न‌िवास यमलोक माना गया है। आइये जानें की मृत्यु के देवता की नगरी कहां और कैसी है।
  • 2 यमलोक में यमराज का व‌िशाल राजमहल है जो 'कालीत्री' नाम से जाना जाता है। यमराज अपने राजमहल में 'विचार-भू' नाम के स‌िंहासन में बैठते हैं।
  • 3 गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में यमलोक के बारे में बताया गया है ज‌िसमे कहा गया है क‌ि 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक बसा है। योजन प्राचीन काल में दूरी नापने का पैमाना था। एक योजन में 4 क‌िलोमीटर होते हैं।
  • 4 यमलोक में प्रवेश के ल‌िए चार द्वार हैं जो चारों द‌िशाओं में स्‍थ‌ित हैं। दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। दान-पुण्य करने वाले व्यक्त‌ि पश्च‌िमी द्वार से प्रवेश करते हैं। उत्तर द्वार से उन्हें प्रवेश म‌िलता है जो सात्व‌िक व‌िचारों वाले और सत्यवादी होते हैं। माता-प‌िता एवं गुरूजनों की सेवा करने वाले भी इसी द्वार से यमलोक में प्रवेश पाते हैं।
  • 5 सबसे उत्तम द्वार उत्तर द‌िशा में है। इसे स्वर्ग द्वार के नाम से जाना जाता है। इस द्वार से स‌िद्ध संत और मुन‌ियों को प्रवेश म‌िलता है। इस द्वार से प्रवेश करने वालों का स्वागत अप्सराएं, देव और गंधर्व करते हैं।

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